काल भैरव अष्टमी आज है, हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक अमांत मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव का जन्म हुआ था,ज्योतिषीय दृष्टि से अष्टमी तिथि 23 बजकर 00 मिनट 37 सेकंड तक रहेगी और उसके बाद अगले दिन नवमी तिथि रहेगी,और आज के दिन ही दुष्टों को दंड देने वाले और भक्तों की रक्षा करने वाले देवता काल भैरव की जयंती है।
शिवपुराण’ के अनुसार कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यान्ह में भगवान शिव के रुधिर (रक्त) से भैरव की उत्पत्ति हुई थी, अतः इस तिथि को भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है, पौराणिक मान्यता के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य अत्याचार की सीमाएं पार कर रहा था,यहां तक कि एक बार घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव के ऊपर आक्रमण करने का दुस्साहस कर बैठा,उसके संहार के लिए शिवजी के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई,रूद्र के शरीर से उत्पन्न उसी काया को महाभैरव का नाम मिला,शिवजी ने उन्हें काशी का नगरपाल नियुक्त कर दिया,ऐसा कहा गया है कि भगवान शंकर ने इसी अष्टमी को ब्रह्मा के अहंकार को भी नष्ट किया था,इसलिए यह दिन भैरव अष्टमी व्रत के रूप में मनाया जाने लगा।

भैरव कापालिक सम्प्रदाय के देवता हैं और तंत्रशास्त्र में उनकी आराधना को ही प्राधान्य प्राप्त है, तंत्र साधक का मुख्य भैरव भाव से अपने को आत्मसात करना होता है,गहरा काला रंग,विशाल प्रलंब, स्थूल शरीर, अंगारकाय त्रिनेत्र, काले डरावने चोगेनुमा वस्त्र,रूद्राक्ष की कण्ठमाला, हाथों में लोहे का भयानक दण्ड,डमरू त्रिशूल और तलवार,गले में नाग,ब्रह्मा का पांचवां सिर,चंवर और काले कुत्ते की सवारी काल भैरव के रूप की कल्पना।
ऐसा भी कहा जाता है कि ब्रह्मा जी पाँचवे वेद की रचना करने जा रहे थे,सभी देवो के कहने पर भगवान शिव ने जब ब्रह्मा जी से वार्तालाप किया परन्तु नहीं समझने पर महाकाल से उग्र,प्रचंड रूप भैरव प्रकट हुए और उन्होंने नाख़ून के प्रहार से ब्रह्मा का पाँचवा मुख काट दिया,भगवान शिव की सहायता से भैरव को काशी में ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली,काल भैरव अष्टमी के दिन साधक को भगवान भैरव की पूजा में कालभैरवाष्टकं का विशेष रूप से पाठ करना चाहिए. मान्यता है कि श्रद्धा और विश्वास के साथ यह स्तोत्र पढ़ने वाले साधक पर शीघ्र ही भगवान भैरव की कृपा बरसती है।
![]()
